Monday, November 26, 2012

घर…!!!

इस घर के हर कोने में
बसी हैं  यादें कितनी
इसलिए यहाँ जाना
और जाके भूल पाना
बेहद मुश्किल है ......
माँ के जाने के बाद
पिता ने  मान ली  है हार
हर वक्त यहाँ  खोयी खोयी  सी
तन्हाई  पसरी है ......

ना जाने कब का सो चूका है

बिन बाती का  दीप 
जहाँ माँ मुस्कुराती थी
वो तुलसी उदास सी खड़ी है.....
सूखी  मरुस्थल सी
रंगोली सिसकती है
गाहे बाहे कहीं  आवाज सी  उभरती है
शाम हो गयी  अब  घर आजा लाल
बचपन की भूली बिसरी याद  बिसूरती है ...........
श्रीप्रकाश डिमरी जोशीमठ  उत्तराखंड
नवम्बर २६ २०१२

Thursday, November 1, 2012

जागो रे ....!!!




इस घने अँधेरे में
अपने रोम रोम से

पुकारता हूँ....
 अपने ही आप को

सकल ज्ञानेन्द्रियों को
जाग्रत करने पर भी
उतना नहीं भाग सकता हूँ

जितना सरपट...
 तुम भागते हो


खैरात की...
 बैसाखियों के सहारे

और लांघ जाते हो
कुहासे के उस  पार
जहाँ छद्म जिजीविषा का
सतरंगी सूरज

अभिनन्दन करता है....
 तुम्हारा

और तुम ..
विजयी मुस्कान से
आसीन हो जाते  हो
पक्षपात के सिहांसन पर
जिसे

सामाजिक न्याय का..
 नाम देकर

कुछ लुटेरे सेंकते हैं
प्रजातंत्र के  अलाव में

वोटों की 
आढ़ी तिरछी  रोटियां


 मेरा सारा आक्रोश...
 कैद हो जाता है

बंद बाजुओं में

और...
 ब्यवस्था परिवर्तन  के नाम पर ....


छद्म  नारों  की..
 तुम्हारी खर  पतवार 
उगाती है   
एक खोखली  पराजित मुस्कान


मेरे विवश अंतस में...
अंकुरित हो रहा है 

एक  क्रांति पल्लव ओर 
धीरे धीरे ..
टुकड़ों में बंट रही  है आस्था

 तुम हो कि  सोये हो
भेदभाव पूर्ण भ्रम के..
 उस कुम्भकर्णी जाल में

जहाँ धीरे धीरे सरक रही है 

एक मकड़ी ...
 तुम्हे  लीलने को .......

श्रीप्रकाश डिमरी जोशीमठ सितम्बर ५, २०१२
फोटो साभार  गूगल