नहीं याद कि ..
कब की बात है
उस दिन ...
अम्मा ने थामा था
मेरा हाथ ..
और सपनों की तरह टूटे
एक स्कूल के सामने ..
ठेकेदार से कराया था
मेरा साक्षात्कार
और मिल गयी ..
विवस ...
विरासत मुझे ....
भाग्य की लकीरों
को पत्थर की तरह
समय की हथौड़ी से निरंतर
तोड़ने ......
और भेड़ियों भरे जंगल में
फटे चिथड़ों में जवान होने की ...
उस दिन ...
एकायक लगा ....
किस्मत हो गयी मेहरबान ..
जब एक ....
टिन के पत्तर से बने...
घर नुमा आकृति में
मैं हो गयी दाखिल ...
लगा कि ...
पिया संग मिल गयी
मुझे मेरी मंजिल.......
पर सपनो के वहाँ भी
हो गए तार तार ....
अब दिन भर खून को
पसीने में बेचकर लायी ...
भीगी कागज़ सी ( )
मेरी सहमी हुई भूख को
शराब में डूबा सांप ....
हर रोज डस जाता है ..
रात भर फुफकारता ..
बच्चों को जगा कर
सुबह खुद सो जाता है
मेरी बेबसी पर ..
बेरहम चाँद भी ...
बेशर्मी से मुस्कुराता है ...
और तपती दोपहरिया में ..
सूरज भी मुह चिडाता है ..
मुझे ..
अब नहीं लुभाते..
स्कूल जाते...
माता पिता का ...
दुलार पाते बच्चे ...,
सफ़ेद पोश किसी गुड्डे के
मजदूर दिवस जिंदाबाद के नारे
या रेशम की साडी में लिपटी ..
किसी गुडिया के ..
महिला ससक्तिकरण के मीठे बोल ..
कंक्रीट के ढेर से ऊँचे
उम्र के इस पड़ाव पर भी
मेरे तनहा तनहा से..
इस अंतहीन श्रम को ..
कतई ...नहीं देना है विराम ...
निरंतर.. ठक..ठक ..ठक ..ठक ..
समय की हथौड़ी से ..
करते जाना है अविराम ...
.............................
भाग्य की लकीरों
को पत्थर की तरह
पीटने का काम ......
स्वरचित .....श्रीप्रकाश डिमरी
श्रीनगर /आम्र कुञ्ज उत्तराखंड २९ मई २०१०
अक्सर अपने आस पास ये सब दिखाई देता है..जब मैं विद्यार्थी था..तब अपने घर के पीछे एक नव निर्माणाधीन कॉलोनी में ऐसी ही एक महिला श्रमिक से सामना हुआ था जिसका पति उसकी दिन भर की मेहनत के पैसे शराब में उड़ा देता था मारता पीटता था......कैसी विडम्बना है.... कई वर्षों बाद ऐसा ही कुछ दिखाई दिया .स्मृति पटल में कैद मनोभाव आकार लेने लगे चंद पंक्तियाँ बनकर छलक आये .....
22 comments:
आभार बहुत दिनों बाद आपकी रचना देखी |
भावों को अच्छे शब्द दिए हैं ..उत्तम रचना
दृष्टि में नहीं समझ आता है, उनकी तरह सोच पीड़ा होती है..
बहुत मार्मिक प्रस्तुति...कविता के भाव अंतस को छू गये..
मार्मिक रचना ...पर कटु सत्य है ....
कल 13/07/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
मार्मिक चित्रण
bahut khub...
एक घिनोने सच को बड़ा ही तराशकर प्रस्तुत किया है आपने ...बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति ..!!!!
ओह , बहुत मार्मिक चित्रण ... समाज का कटु सत्य
भाग्य की लकीरों को
पत्थर की तरह
पीटने का काम
भावमय करते शब्द ... बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
अम्मा ने हाँथ थामा
बहुत सुन्दर....
बहुत सुन्दर रचना...
athaah dard bhara hai samaj ke ek katu saty ko ukerta hua sa.
Behad prabhav shaalee likhte hain aap...
यथार्थ उजागर करती..
बेहद भावप्रद रचना....
भावपूर्ण,मार्मिक और हृदयस्पर्शी प्रस्तुति.
दिल को कचोटती हुई.
बहुत सुन्दर , बधाई स्वीकारें.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें, आभारी होऊंगा .
beautiful collection of enlighten thought that came pouring from your soul to our ,really your each and evey poetry is superb ,congratulations brother
beautiful collection of enlighten thought that came pouring from your soul to our ,really your each and evey poetry is superb ,congratulations brother
"पत्थर तोड़ती" की याद दिलाती, मार्मिक प्रस्तुति
hriday udvelit kar gayii ...!!
marmik rachna ...!!
Post a Comment