इस घने अँधेरे में
अपने रोम रोम से
पुकारता हूँ....
अपने ही आप को
सकल ज्ञानेन्द्रियों को
जाग्रत करने पर भी
उतना नहीं भाग सकता हूँ
जितना सरपट...
तुम भागते हो
खैरात की...
बैसाखियों के सहारे
और लांघ जाते हो
कुहासे के उस पार
जहाँ छद्म जिजीविषा का
सतरंगी सूरज
अभिनन्दन करता है....
तुम्हारा
और तुम ..
विजयी मुस्कान से
आसीन हो जाते हो
पक्षपात के सिहांसन पर
जिसे
सामाजिक न्याय का..
नाम देकर
कुछ लुटेरे सेंकते हैं
प्रजातंत्र के अलाव में
वोटों की
आढ़ी तिरछी रोटियां
मेरा सारा आक्रोश...
कैद हो जाता है
बंद बाजुओं में
और...
ब्यवस्था परिवर्तन के नाम पर ....
छद्म नारों की..
तुम्हारी खर पतवार
उगाती है
एक खोखली पराजित मुस्कान
मेरे विवश अंतस में...
अंकुरित हो रहा है
एक क्रांति पल्लव ओर
धीरे धीरे ..
टुकड़ों में बंट रही है आस्था
टुकड़ों में बंट रही है आस्था
तुम हो कि सोये हो
भेदभाव पूर्ण भ्रम के..
भेदभाव पूर्ण भ्रम के..
उस कुम्भकर्णी जाल में
जहाँ धीरे धीरे सरक रही है
एक मकड़ी ...
तुम्हे लीलने को .......
श्रीप्रकाश डिमरी जोशीमठ सितम्बर ५, २०१२
फोटो साभार गूगल
फोटो साभार गूगल
21 comments:
गहन भाव लिये बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
कुछ देकर लेने की कला..
तुम हो कि सोये हो
भेदभाव पूर्ण भ्रम के.. उस कुम्भकर्णी जाल में
जहाँ धीरे धीरे सरक रही है
एक मकड़ी ... तुम्हे लीलने को .... जागो, सुनो, देखो ....
बहुत बढ़िया सर!
सादर
गहन भाव की बेहतरीन प्रस्तुति...
:-)
आक्रोश से उपजा आवाहन...
जोरदार लगा।
गहन सटीक अभिव्यक्ति....
बहुत अच्छे
बहुत अच्छी और सटीक पोस्ट है। पढ़ कर बहुत ही अच्छा लगा.
आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं।
अगर आपको अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़ें।
धन्यवाद !!
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post.html
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सटीक प्रस्तुति ..
आंखे खुली रखनी चाहिए
जिसकी ज्ञानेन्द्रियां जागृत हों,वह विवश नहीं हो सकता।
व्यवस्था को देख ऐसा ही आक्रोश उपजता है मन में .... गहन अभिव्यक्ति
Saathi aksar,saath hoke bhee aage nikal jate hain...aur saath chhoot jata hai...
सामयिक रचना
सुंदर भाव... एक नजर इधर भी http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com
गहन अभिव्यक्ति ...
बेहद सुन्दर...गहन अभिव्यक्ति ....जो हर युग में ...हर समय में सामायिक रहेगी !
ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
♥~*~दीपावली की मंगलकामनाएं !~*~♥
ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
सरस्वती आशीष दें , गणपति दें वरदान
लक्ष्मी बरसाएं कृपा, मिले स्नेह सम्मान
**♥**♥**♥**●राजेन्द्र स्वर्णकार●**♥**♥**♥**
ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
बहुत गहन प्रस्तुति आभार
आज की व्यवस्था पर गहरा कटाक्ष .बहुत सुन्दर रचना बधाई
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