Wednesday, January 19, 2011

अभिलाषा.....!!!!


     अभिलाषा....... 
मैंने   जब भी
प्रेम ओर  संवेदना की  जोत जलायी
तुमने ....
अविश्वाश  ओर दंभ से बुझायी ..
ऐसे जहाँ में...
 जहाँ  स्नेह बना  मरुस्थल ....
.आस्था ओर पवित्रता ....
जैसे  भूकंप  सी  हलचल
में क्योंकर ..
भूला  ...
अविश्वाश  की अंतहीन  खाई  ...
शीशे  को रौंदते  ....
 पत्थर के पुतले
 क्यों  न दिये दिखाई ...????
उस जहाँ में...
जहाँ ....
हर चेहरे  पर ..
शुष्क रेगिस्तान सी  मरीचिका  है ...
   फिर भूली  बिसरी
 किसकी याद आई...???
क्यों ...
उर की कोंपल मुरझाई ???
दुहाई है  दुहाई .....
हे ! प्रभु !...
यूँ  फिर  कभी इंसान न  बनाना
अगर
हो सके तो...
इंसानों की  बस्ती  से....
दूर बहुत  दूर  ..
उस तलहटी में ..
जहां हो ...
इन्द्रधनुषी...
 रंगों की  अठखेलियाँ
हरी दूब की ...
 अबोध  मुस्कानों  की लड़ियाँ ...
विहगों के...
 कलरव का मधुर  गान  ..
झरने की  ....
कलकल निर्मल   तान ....
प्रभात  के ..
अरुणिम सुकुमार  मुख पर
सांझ की ...
 सांवली  सलोनी मुस्कान...
वहीँ ....हाँ  वहीँ...
मुझे ...
चिर निंद्रा  में सुलाना
जन्म मृत्यु  के
 चक्र में ….
अगर  कभी पड़े  जगाना
तो  एक नन्हा  सा..
 फूल बनाकर  खिलाना  
पर  ....
  फिर  कभी इंसान न  बनाना
श्रीप्रकाश डिमरी...जोशीमठ
२० दिसम्बर  २०१०