अभिलाषा....... मैंने जब भी प्रेम ओर संवेदना की जोत जलायी तुमने .... अविश्वाश ओर दंभ से बुझायी .. ऐसे जहाँ में... जहाँ स्नेह बना मरुस्थल .... .आस्था ओर पवित्रता .... जैसे भूकंप सी हलचल में क्योंकर .. भूला ... अविश्वाश की अंतहीन खाई ... शीशे को रौंदते .... पत्थर के पुतले क्यों न दिये दिखाई ...???? उस जहाँ में... जहाँ .... हर चेहरे पर .. शुष्क रेगिस्तान सी मरीचिका है ... फिर भूली बिसरी … किसकी याद आई...??? क्यों ... उर की कोंपल मुरझाई ??? दुहाई है दुहाई ..... हे ! प्रभु !... यूँ फिर कभी इंसान न बनाना अगर हो सके तो... इंसानों की बस्ती से.... दूर बहुत दूर .. उस तलहटी में .. जहां हो ... इन्द्रधनुषी... रंगों की अठखेलियाँ हरी दूब की ... अबोध मुस्कानों की लड़ियाँ ... विहगों के... कलरव का मधुर गान .. झरने की .... कलकल निर्मल तान .... प्रभात के .. अरुणिम सुकुमार मुख पर सांझ की ... सांवली सलोनी मुस्कान... वहीँ ....हाँ वहीँ... मुझे ... चिर निंद्रा में सुलाना जन्म मृत्यु के… चक्र में …. अगर कभी पड़े जगाना तो एक नन्हा सा.. फूल बनाकर खिलाना पर .... फिर कभी इंसान न बनाना श्रीप्रकाश डिमरी...जोशीमठ २० दिसम्बर २०१०
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20 comments:
वाह श्री जी....इंसानियत के प्रति विमखुता.....लेकिन एक चाह को अभिव्यक्ति दी है....बहुत खूब सर
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर लिखा है आपने ...श्री प्रकाश जी... भावनात्मक भी और सुन्दर शब्दों से मढ़ी गयी ये भावनाओ की माला ..बहुत पसंद आयी ..किन्तु कविता निराशावादी है .. आशाओं के पुष्प पुनः पल्लवित हों.. सादर
अविश्वाश की अंतहीन खाई..
मानवता पर विश्वाश करने से रोक देती है अक्सर...
आज जब इंसानियत नहीं दिखाई देती तो यही दिल में आता है कि मुझे इंसान नहीं बनाना....बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति.
कैलाश चंद्र शर्मा जी !!!कोटि कोटि अभिनन्दन !!! आपको हार्दिक शुभ कामनाएं
सादर
शर्मा जी !!! उत्साह वर्धन हेतु कोटि कोटि आभार ...
सादर अभिनन्दन !!!
चंद्र मोहन जी ...कोटि कोटि अभिनन्दन ..सादर !!!
नूतन जी !!! अंतर्द्वंद में मन की गति कुछ यूँ ही होती होगी शायद मुझे लगा घोर निराशाओं में पुष्प बनने की अभिलाष किंचित आशावादिता हो ....
आपकी प्रतिक्रिया से नूतन आशाओं का संचरण अनुभव कर रहा हूँ....आपका हार्दिक अभिनन्दन !!!
संगीता स्वरुप जी !!!! आशीष हेतु कोटि कोटि अभिनन्दन ..
सादर !!!
प्रतिबिम्ब जी !!!! उत्साह वर्धन हेतु आपको अपार आभार....
अंतर्मन के भाव जो संवेदनशीलता को दर्शाते हैं.....
बहुत सुंदर ....गणतंत्र दिवस की मंगलकामनाएं
जन्म मृत्यु के… चक्र में ….
अगर कभी पड़े जगाना
तो एक नन्हा सा..
फूल बनाकर खिलाना पर ....
फिर कभी इंसान न बनाना
आह....
भावों को उद्वेलित करती बेहद सशक्त व सुन्दर रचना लिखी है.
बहुत ही अच्छी लगी
बधाई
आभार
गणतंत्र दिवस की मंगलकामनाएं
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |बधाई |मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार |
आशा
grt lines by you sir.feelings being described in fantastic way.enjoyed a lot.with regards,vikas parmar,civil engg,pantnagar univ.
काफी अच्छा लिखा है आपने :)
मन के हताश पर कोमल भावों की सुंदर अभिव्यक्ति .कहते हैं 'बड़े भाग मानुष तन पावा ..'.मनुष्य जीवन में ही सर्वोच्च लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है.सार्थक कर्म प्रयास और प्रभु कृपा की आवयश्कता है बस.
आप मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा ' पर आये
बहुत अच्छा लगा .आपका बहुत बहुत आभार .
सुप्रभात का स्वर्णिम शुभ सौन्दर्य पूर्ण यह काव्य...
बहुत सुन्दर ...
आ.श्रीप्रकाश जी,
कहा गया है "बड़े भाग मानुष तन पावा ..."
आपकी कोमल भावनाएं किस प्रकार से आहत सी हुई जान पड़ती हैं,यह आपकी इस सुंदर रचना से अभिव्यक्त हो रहा है.
मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा' पर 'ऐसी वाणी बोलिए'पर आप तशरीफ फरमाएं तो हो सकता है कुछ सकून आजाये.
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