Tuesday, March 22, 2011

मैं अब न लौटूंगा...!!!


आह !!!

प्रिये !!!

दृगों में लिपटे

तुम नन्हे फूल से

कहा रहे भटके ????

तुम मुझे भूल के ???

अब भुला ही देना ....

नहीं बुलाना मुझको

मैं अब न लौटूंगा ????

पर आज क्यों मैं ..!!!!

सशंकित हो उठा हूँ

क्या तुम खो जाओगे ???

असहाय होकर

मुझे क्या

उस पार ...

जाता हुआ...

देख पाओगे ???

या रुदन में

आसुंओं के बीच

दृग में मुझे पाओगे .. ????

शांत रहना तुम ..

किंचित ना रोना

धरा पर झर रहे पुष्पों से

यूँ ब्यथित ना होना ....!!!

काट लेना इस विपद को

मित्र तुम धीर से ...

मैं चला उस पार ....

शरद की पीर से

तुम करना प्यार ..

उस शेष से

जो कल फिर ...

क्षितिज के ….

उस पार से

बसंत बन मुस्काएगा ....

अंक में भर कर तुम्हे ...

मेरे स्वरों में

विरह गीत सुनाएगा... ..

श्रीप्रकाश डिमरी

जोशीमठ १६-३-२०११

12 comments:

Kailash Sharma said...

बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..सुन्दर

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर ...मन के वेदना भरे भाव..... कमाल की अभिव्यक्ति.....

Dinesh pareek said...

आप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
मेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html

arvindpant said...

shriprakash ji i wish all your poems to join together into asingle powerful stream to flow into wast divine oceanof eternal silence.

Unknown said...

@ दिनेश पारीक जी ..स्नेह एवं अपार शुभ कामनाएं....

Unknown said...

Arvind pant ji..so nice of your cordial motivational comment...
Love and Regards !!

Prakash Jain said...

bahut sundar sir....

bahut pasand aayi aapki rachna...


www.poeticprakash.com

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

भावप्रवण रचना ... सुन्दर प्रस्तुति

सदा said...

वाह ...बहुत खूब ।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

खुबसूरत रचना....
सादर बधाई...

मेरा मन पंछी सा said...

sundar bhav purn prstuti....

Mamta Bajpai said...

मर्म स्पर्शी रचना