Thursday, November 1, 2012

जागो रे ....!!!




इस घने अँधेरे में
अपने रोम रोम से

पुकारता हूँ....
 अपने ही आप को

सकल ज्ञानेन्द्रियों को
जाग्रत करने पर भी
उतना नहीं भाग सकता हूँ

जितना सरपट...
 तुम भागते हो


खैरात की...
 बैसाखियों के सहारे

और लांघ जाते हो
कुहासे के उस  पार
जहाँ छद्म जिजीविषा का
सतरंगी सूरज

अभिनन्दन करता है....
 तुम्हारा

और तुम ..
विजयी मुस्कान से
आसीन हो जाते  हो
पक्षपात के सिहांसन पर
जिसे

सामाजिक न्याय का..
 नाम देकर

कुछ लुटेरे सेंकते हैं
प्रजातंत्र के  अलाव में

वोटों की 
आढ़ी तिरछी  रोटियां


 मेरा सारा आक्रोश...
 कैद हो जाता है

बंद बाजुओं में

और...
 ब्यवस्था परिवर्तन  के नाम पर ....


छद्म  नारों  की..
 तुम्हारी खर  पतवार 
उगाती है   
एक खोखली  पराजित मुस्कान


मेरे विवश अंतस में...
अंकुरित हो रहा है 

एक  क्रांति पल्लव ओर 
धीरे धीरे ..
टुकड़ों में बंट रही  है आस्था

 तुम हो कि  सोये हो
भेदभाव पूर्ण भ्रम के..
 उस कुम्भकर्णी जाल में

जहाँ धीरे धीरे सरक रही है 

एक मकड़ी ...
 तुम्हे  लीलने को .......

श्रीप्रकाश डिमरी जोशीमठ सितम्बर ५, २०१२
फोटो साभार  गूगल 

21 comments:

सदा said...

गहन भाव लिये बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

प्रवीण पाण्डेय said...

कुछ देकर लेने की कला..

रश्मि प्रभा... said...

तुम हो कि सोये हो
भेदभाव पूर्ण भ्रम के.. उस कुम्भकर्णी जाल में
जहाँ धीरे धीरे सरक रही है
एक मकड़ी ... तुम्हे लीलने को .... जागो, सुनो, देखो ....

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत बढ़िया सर!


सादर

मेरा मन पंछी सा said...

गहन भाव की बेहतरीन प्रस्तुति...
:-)

देवेन्द्र पाण्डेय said...

आक्रोश से उपजा आवाहन...

जोरदार लगा।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

गहन सटीक अभिव्यक्ति....

Rohitas Ghorela said...

बहुत अच्छे

बहुत अच्छी और सटीक पोस्ट है। पढ़ कर बहुत ही अच्छा लगा.

आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं।
अगर आपको अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़ें।
धन्यवाद !!
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post.html

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संगीता पुरी said...

सटीक प्रस्‍तुति ..
आंखे खुली रखनी चाहिए

कुमार राधारमण said...

जिसकी ज्ञानेन्द्रियां जागृत हों,वह विवश नहीं हो सकता।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

व्यवस्था को देख ऐसा ही आक्रोश उपजता है मन में .... गहन अभिव्यक्ति

kshama said...

Saathi aksar,saath hoke bhee aage nikal jate hain...aur saath chhoot jata hai...

Onkar said...

सामयिक रचना

kuldeep thakur said...

सुंदर भाव... एक नजर इधर भी http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com

सु-मन (Suman Kapoor) said...

गहन अभिव्यक्ति ...

Saras said...

बेहद सुन्दर...गहन अभिव्यक्ति ....जो हर युग में ...हर समय में सामायिक रहेगी !

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...



ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
♥~*~दीपावली की मंगलकामनाएं !~*~♥
ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
सरस्वती आशीष दें , गणपति दें वरदान
लक्ष्मी बरसाएं कृपा, मिले स्नेह सम्मान

**♥**♥**♥**●राजेन्द्र स्वर्णकार●**♥**♥**♥**
ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ

Mamta Bajpai said...

बहुत गहन प्रस्तुति आभार

Mamta Bajpai said...

आज की व्यवस्था पर गहरा कटाक्ष .बहुत सुन्दर रचना बधाई